शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

ओ,चरवाहे


ओ,चरवाहे ! सँग-सँग मुझे लिए चल.
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 घंटी गले बाँध दी ऐसी ,छन-छन भान जगाए  ,
तेरे आँक छपे माथे पर, बाकी कौन उपाए .
हेला दे, ले साथ .कहीं यों रह न जाउँ मैं एकल !

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अंकुश बिन ,पगहे बिन, भरमा पशु तेरा मनमाना,
पहुँच वहीं तक गुज़र वहीं पर, तेरी घेर ठिकाना ,
 रेवड़ की गिनती में अपनी,तू ही हाँक लिए चल !

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लौट रहे पग  घूल उड़ाते, संझा धुंध बिखेरे ,
अपने खूँटे गड़े जहाँ पर उसी छान में तेरे  .
 रे अहीर , इस छुट्टेपन को तू सँभाल, दे संबल !

 सँग-सँग मुझे लिए चल !
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