सोमवार, 28 जुलाई 2014

तोता-मैना .

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बेटा तरु पर बैठा तोता ,दूर-दूर उड़ जाता ,
मैना जैसी चहक रही तू,मेरी रानी बिटिया ,
बड़ा घड़ा है बेटा जल का उठता नहीं उठाए,
प्यास बुझा शीतल कर देती ,बेटी छोटी- लुटिया .
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कोना-कोना महक भर रही प्यार भरी ये बोली ,
तेरे कंठ स्वरों में किसने ऐसी मिसरी घोली !
बेटा उछल-कूद कर करता रहता हल्ला-गुल्ला  
दुनिया भर की बातें कहता-सुनता, बड़ा चिबिल्ला !

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जूतों को उछाल देता वह फेंक हाथ का बस्ता,
डाल जुराबें इधर-उधर जैसे ही घर में घुसता 
तुझे छेड़ कर हँसता, करता मनमानी शैतानी ,
पर रूठे तो तुरत मनाता, मेरी गुड़िया रानी !
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दोनो हैं दो छोर, जिन्हें पा  भर जाता हर कोना ,
राखी ,सावन,दूज, दिवाली हर त्योहार सलोना.
घर-देहरी सज गई  कि जैसे  राँगोली पूरी हो ,
हँसने लगता घर ज्यों बिखरी फूलों की झोली हो !
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घर से बाहर नहीं हुआ करते सब अपनों जैसे ,
तरह-तरह के लोगों में कुछ होंगे ऐसे-वैसे .
तेरा भइया तुझे छाँह देगा इस विषम डगर में ,
उसके साथ निडर हो लड़ना, इस संसार-समर में !
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बाहर की दुनिया में वह है  चार नयन से चौकस ,
कहीं न मेरी बहिना पर आ जाए कोई संकट .
डोली में बिठला कर तुझको बिदा करेगा जिस दिन ,
बार-बार टेरेगा तुझको , इस घर का खालीपन !
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मेरी दो आँखें तुम दोनों , तुम ही असली धन हो
जीजी औ'भइया का सुखमय प्यार भरा जीवन हो !
साथ निभाना इक-दूजे का बाँध नेह की डोरी.
तुम हो मेरे पुण्य ,और तुम हँसी-खुशी हो मेरी !
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मंगलवार, 22 जुलाई 2014

तुम कहो ...

तुम अपनी अंतर्व्यथा कहो!

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जब वाष्प कंठ तक भर आये, 

वाणी जब साथ न दे पाये,
छाये विषाद कोहरा बनकर , तब छलक नयन से सजल बहो  !

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शब्दों में अर्थ न समा सके, 

सारे सुख जिस क्षण वृथा लगें,
मन गुमसुम अपने में डूबे , वह घन-भावन अन्यथा न हो !

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 श्वासों की तपन विकल कर दे ,

सब जोग-जतन निष्फल कर दे ,
रुकना पड़ जाए अनायास, पर मौन-अधूरी कथा कहो !

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सोमवार, 14 जुलाई 2014

पानी बाबा आया.

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 भूरे रुएँ ,धुएँ सा तन   , पानी बाबा आया !
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नई फसल  काँधे पर लादे,  बुँदियाँ बट-बट डोरी बाँधे   ,
टूटे-फूटे दाँत निपोरे ,दसों पोर  पानी में  बोरे ,
छींटे उड़ उड़ पड़ते  ,हँफ़नी से यों भर आया !

चढी साँस खींचे , झुक झुक के  चले बाय का मारा,
जटा जूट बिखरा ऊपर से, लथपथ  बेचारा ,
बूढ़-पुरातन मनई, डोले सलर-बलर काया !
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हिलता-डुलता भारी भरकम, कहीं रुका सा ले लेता दम ,
लाठी टेक कहीं , झटका दे टार्च फेंकता एकदम.
बज्जुर बादल गरज- तरज,  तीखा कौंधा  छाया ! 
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उमड़ -घुमड़ कर बोले अपने  अगड़म-बगड़म बोल,
करता गड़ड़-गड़ड़ गम, थम-थम जैसे बाजे ढोल .
ठोंक बजा कर पाँव बढ़ाता ,  सबको  भरमाया !

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 झल्ली भर भर  आम, पल्लियाँ भर भुट्टे-ककड़ी ,
फूले हुए फलैंदे जामुन, हरी साग गठरी, .
अँगना  भर नाती-पोते , छू-छू कर दुलराया !
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अन-धनवाली झोली खाली, में हरियाली भर दी,
मोर-नाचते बूटों वाली हरी  चुनरिया धर दी .
टर्र-टर्र दादुर , पी-पी  पपिहे  ने गुहराया !
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मटियाले पानी में , हाथ घँघोता छोटा लल्ला,
बौछारों में भीगे ,भागे- कूद मचाए हल्ला -

'निकल आओ रे , ये कागज़ की नाव चली  भाय्या' !
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आज जुड़ाई  दरकी छाती ,कब की सूखी- रूखी धरती, 
रोम-रोम हरसाया, सुख पा, नैन-तलैयाँ सरसीं. 
माटी में  सोंधी भभकन , हर झोंका  पछुआया !

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नेहा-मेहा लाया रे,  पानी बाबा आया !

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सोमवार, 7 जुलाई 2014

शब्द-दर्पण

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वही बावन अक्षर .
गिनी-चुनी मात्राएँ और
थोड़े से विराम चिह्न .
शब्द भी  कोश में संचित,अर्थ सहित.
 सबके पास यही पूँजी.
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आगे सब-कुछ भिन्न ,
 हाथ बदला कि -
व्यंजनों के स्वाद बदले ,

स्वरों के राग बदले.
वही चेत -
कितने  रूपों, कितने रंगों में,
कितने प्रसंगों में:
और सारा का सारा प्रभाव ,
एकदम भिन्न !
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विषय को छोड़,
व्यक्ति को
लिखने लगती है भाषा.
सारे आवरण धरे रह जाते हैं .
वही शब्द, कुछ कहते
कुछ और कह जाते हैं ,
मनोजगत का सारा एकान्त ,
बिंबित कर ,
दर्पण बन जाते हैं !
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