मंगलवार, 27 अगस्त 2013

एक नचारी - नटवर के नाम .

*
दुनिया के देव सब देवत हैं, माँगन पे ,
और तुम अनोखे ,खुदै मँगता बनि जात हो !
'अपने सबै धरम-करम हमका समर्पि देओ ,'
गीता में गाय कहत, नेकु ना लजात हो !
*
वाह ,वासुदेव ,सब लै के जो भाजि गये,
कहाँ तुम्हे खोजि के वसूल करि पायेंगे !
एक तो उइसेई हमार नाहीं कुच्छौ बस ,
तुम्हरी सुनै तो बिल्कुलै ही लुट जायेंगे!
*
अरे ओ नटवर ,अब केतो भटकावेगो ,
कैसी मति दीन्हीं ,जौन जग अरुझाय दियो !
जीवन और मिर्त्यु जइस धारा के किनारे खड़े,
आपु तो रहे थिर ,अउर हमका धकियाय दियो !
*
तुम्हरे ही प्रेरे, निरमाये तिहारे ही ,
हम तो पकरि लीन्हों, तुम छूटि कितै जाओगे !
लागत हो भोरे ,तोरी माया को जवाब नहीं,
नेकु मुस्काय चुटकी में बेच खाओगे !
*
एक बेर हँसि के निहारो जो हमेऊ तनि ,
हम तो बिन पूछे बिन मोल बिकि जायेंगे !
काहे से बात को घुमाय अरुझाय रहे ,
तू जो पुकारे पाँ पयादे दौरि आयेंगे !
*

रविवार, 25 अगस्त 2013

साक्षी हो तुम !

*
 मैं तुम पर विश्वास नहीं करती !
भीड़  के साथ,
 तमाशबीन बने ,
देखा है मैंने तुम्हें .
*
कभी गलियों में,
कभी गालियों में
औरत हमेशा घसीटी जाती है .
किसी की बेटी ,बहन ,माँ  नहीं
एक मादा भर  होती है जहाँ .
बिलकुल अकेली !
*
धरती-आकाश के बीच निराधार.
दृष्टियों के असह्य आघात,
कथरी के तार खींच-खींच,
सारी सिलाई उधेड़ने को उतारू.
कहीं कोई नहीं,
टेर ले जिसे ,
सारी भीड़ एक.
*
बिना चेहरे के लोग
खतरों से बचते.
सुरक्षा खोल में दुबके .
पौरुष का विकृत और विद्रूप,
ओह, कैसा अनुभव !
*
मैंने देखा है तुम्हें ,
उसी भीड़ में.
साक्षी हो तुम !
मैं तुम्हारा विश्वास नहीं करती .
मैं किसी का विश्वास नहीं करती !
*

गुरुवार, 22 अगस्त 2013

लड़की .

*
आती है एक लड़की ,
मगन -मुस्कराती ,
खिलखिलाकर हँसती है ,
सब चौंक उठते  -
क्यों हँसी लड़की ?
*
उसे क्या पता आगे का हाल ,
प्रसन्न भावनाओं में डूबी ,
कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है ,
सारे संबंध मन से निभाती  !
कोई नहीं जानता ,
जानना चाहता भी नहीं 
क्या चाहती है लड़की .
मन की बात बोल दे 
तो बदनाम हो जाती है लड़की .
*
और एक दिन 
एक घर से दूसरे घर ,
अनजान लोगों में
चुपचाप चली जाती है .
नाम-धाम ,पहचान सब यहीं छोड़,
एकदम गुमनाम हो  जाती है लड़की.
निभाती है जीवन भर 
कभी इस घर, कभी उस घर .
देह में नई देह रचती 
विदेह होती लड़की.  
*
सब-कुछ सौंप सबको 
नये रूप, नये नाम  सिरज,
अरूप अनाम हो ,
झुर्रियोंदार काया ओढ़ 
 हवाओं में विलीन हो जाती.
कोई नही जानता ,  
यही थी 
वह हँसती-खिलखिलाती, 
नादान सी लड़की ! 
*

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

आत्मनिवेदन - संपूर्ण

 मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि इस बार भारत जाने का मुझे एक बड़ा लाभ हुआ ,(16अगस्त 2013 को प्रकाशित ,एक बड़ा पुराना  'आत्म-निवेदन' ,जो मेरी स्मृति में आधा-  अधूरा ही शेष था ,मुझे पूरा मिल गया  - यहाँ (उसी प्रारूप में )अविरल रूप में प्रस्तुत है .

(यादों की पुरानी गठरी से यह 'आत्म-निवेदन' बार-बार सिर उठा रहा था . उस 
निःस्व शरणागत के समर्पणमय हृदय से उठते दैन्य-सजल उद्गारों का खरापन और पूर्ण निष्ठा उसे इतना सहज-ग्राह्य बना रही है कि भाषा में उर्दू-फ़ारसी का प्राधान्य भी बिना अटके सीधा मन में उतर जाता है . प्रस्तुत है - )
*
श्री गणेशाय नमः.
भोर-साँझ सुमिरन करो मन  में सिरी गणेश,
होय सहाय सरस्वती  काटे सकल कलेश. 1.
प्रथम ध्यान गणेश का मन कर ,हृदय विचार,
ब्रह्मा-विष्णु-महेश को कर प्राणन आधार. 2.
काम क्रोध और लोभ को हिरदय से तज देय
ता पीछे तू ध्यान दे औ'अस्तुत कर लेय. 3.
मन-इच्छा सब पूरण, होंगे अबकी बार,
श्री राम प्रताप से कट जायें दुःख अपार. 4.
चालिस दिन का पाठ कर हिरदय, ध्यान लगाय,
किरपा से श्रीकृष्ण की मन इच्छा फल जाय. 5.
*
करो कृपा हे गिरिधर मुरारी .
 लगाई क्यों मेरे कारज में देरी !
*
मुकुट-धर माल-धर गिरिधर मुरारी,
तेरे दरबार में आया भिखारी ,
लगा कर कान सुन विपदा हमारी .
यही है आरज़ू बाँके बिहारी . 6. करो कृपा.
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लिया अवतार तुम वसुदेव के घर ,
ठिकाना आ लिया फिर नन्द के घर .
तहलका पड़ गया था कंस के घर ,
किया जो कुछ था तुमने वो है उजागर. 7.करो कृपा.
*
हुये तुम ब्रज में नामी कन्हैया,
लुटैया दूध के माखन चुरैया ,
लकुट ले हाथ औ' काँधे कमरिया,
बने बन-बन में तुम गइयें चरैया . 8.करो कृपा.
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किया था कोप इन्द्र ने ब्रज पर ,
हुई वरषा थी मूसलधार ब्रज पर ,
तुम्हीं ने जब कि देखा हाल सब तर,
बचाया ब्रज को गिरि धार नख पर . 9.करो कृपा.
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बजा कर बाँसुरी ब्रज को रिझाया,
नचे तुम आप और सब को नचाया,
हरएक ग्वालिन के घर जा माखन चुराया,
जो खाया खा लिया बाकी लुटाया . 10.करो कृपा.
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बने तुम गोपियों के प्राण आधार,
हुआ करती थीं वो तुम पे बलिहार .
किये तुमने ब्रज में लाखों चमत्कार,
मुझे क्यों कर रहे हो जी से बेज़ार. 11.करो कृपा.
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लिखा पाती में जब रुकमन ने ये हाल,
रुक्म कहता हैं मैं ब्याहूँगा शिशुपाल
निहायत हो रहा है तंग अहवाल .
छुड़ाया जबर-जोरी से उसे तत्काल. 12.करो कृपा.
*
सबों को  किया तेरी किरपा ने लीन,
अधम रैदास को निज भगति तुम दीन,
ये क्या इन्साफ़ है और कौन आईन .
हमारी बार पै हिया अस निठुर कीन . 13.करो कृपा.
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गया हूँ बस अपने नाम से मैं,
तरसता हूँ महज़ आराम से मैं,
बहुत लाचार हूँ सब काम से मैं,
अरज यह कर रहा तुम राम से मैं . 14.करो कृपा.
*
जिवस हैराँ हूँ और हूँ परेशाँ ,
महज़ जाता रहा है मेरा ईमाँ ,
न वह बूदी का मेरे कुछ है सामाँ,
ज़रूरत है तेरी किरपा की भगवान ! 15.करो कृपा.
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मैं अपने दुख को तुमसे कह चुका हूँ ,
जो लिखना था उसे भी लिख चुका हूँ ,
अरज अपनी मैं तुमसे कर चुका हूँ 
शरण तेरी मैं भगवन् आ चुका हूँ . 16.करो कृपा.
*
किसी ने भक्ति कर-कर के रिझाया,
किसी ने जस तेरा गाया-बजाया,
किसी ने कुछ कथन कह के सुनाया ,
अधम हूँ मैं, तेरे चरणों में आया .17.करो कृपा.
*
जगत में आन कर कुछ भी न देखा 
जिसे देखा उसे मोहताज देखा,
सभी रखते हैं तुझते अपना लेखा,
ताल्लुक तेरे हैं सभी अपना परेशाँ . 18.करो कृपा.
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निहायक तंग हूँ मैं मुफ़लिसी से,
हुआ आरी हूँ ऐसी ज़िन्दगी से,
जिबस लाचार जइफ़ो आजरी से ,
निदामत हो रही है बेज़री से .  19.करो कृपा.
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भगत तारे किया कुछ न अजब तुम,
अधम भी तारे बेसबब तुम,
किये हैं औ'करोगे  काम सब तुम ,
हमारी बार चुप बैठे गजब तुम. 20.करो कृपा.
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हमारे हाल को सुनते नहीं हो 
खयाले मुफ़लिसी करते नहीं हो ,
ज़ुबाँ से कुछ भी अब कहते नहीं हो,
हमारी नाथ सुध लेते नहीं हो . 21.करो कृपा.
*
सभी करतूत स्वामी तेरे कर में
तेरा ही बस मुझे रख जिस बहर में 
बहुत सी ख़ाक छानी दर-ब-दर में ,
मुझे अब कल नहीं, बाहर न घर में . 22.करो कृपा.
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किसी को ज़ोर है, सीमोजरी का,
किसी को ज़ोर है ,जादूगरी का 
किसी को ज़ोर है, ज्योतिषगरी का ,
मुझे है जो़र बस किरपा तेरी का .  23.करो कृपा.
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कोई हर नाम लेने में मगन है,
कोई साधू की सेवा में मगन है 
कोई ख़ैरात करने में मगन है ,
मेरे हिरदय में हरदम यह सुखन है . 24.करो कृपा.
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कोई कहता है बेहतर है ये तदबीर,
कोई कहता है मुकद्दम है ये तकदीर,
दफ़ा हो जाए जिससे सारी तकसीर,
मेरी हर वक्त तुमसे है यही तकरीर.  25.करो कृपा.
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अरे गिरधर ,मेरी सुनते नहीं टेर,
लगाई तुमने कारज में बड़ी देर,
लिया है मुफ़लिसी ने हर तरफ़ से घेर, 
नहूसत के मेरे दिन हैं, तू इन्हें फेर .  26.करो कृपा.
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जगत में जो अजीज़ों अकरवा हैं,
हरेक तेरी छाया बिन खफ़ा है ,
तेरे दरबार में यह इल्तिज़ा है ,
दया कर मुझपे, ये मौका दया का है . 27.करो कृपा.
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जगत में हैं बहुत पापी अधर्मी,
मगर मुझ सा नहीं कोई कुकर्मी
बहुत मैंने सही सख़्ती औ' नर्मी ,
दया कर मुझ पर, अब कर न गर्मी. 28.करो कृपा.
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चतुर बन कर मैं धोखा खा चुका हूँ ,
किये की भी सज़ा मैं पा चुका हूँ ,
पकड़ ले हाथ गहरे जा चुका हूँ ,
तुम्हें दामन मैं अपना दे चुका हूँ . 29.करो कृपा.
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हमेशा सबकी रक्षा कर रहे हो ,
हमारे काम को क्यों थक रहे हो ,
हमारी बार को क्यों सो रहे हो ,
रुई सी कान में क्यों दे रहे हो .  30.करो कृपा.
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फ़िकर की फाँस में ये जाँ फँसी है ,
मगर मूरत तेरी हिरदे बसी है ,
ख़बर ले वर्ना अब मेरी हँसी है ,
हँसी मेरी न ये तेरी हँसी है . 31.करो कृपा.
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अधम हूँ और मैं घट में छुटाई ,
कहो हो किस तरह ओहदे बराई ,
अठारह पुराणों में तेरी बड़ाई ,
दया कर अब तुझे जसुमत दुहाई !  32.
*
करो कृपा हे गिरिधर मुरारी ,
लगाई क्यों मेरे कारज में देरी !
*









(

शनिवार, 10 अगस्त 2013

मनौती .

*
युग-युगों के बाद ऐसा दिन दिखाया
चंडिका का मंत्र, अभिनन्दन करो रे !
आ गई बेला करो प्रस्थान रण का ,
सामने आ शक्ति का वंदन करो रे ,
*
महाशक्ति बने कि सम्मुख खड़ी दुर्गा
साथ हो कर  हाथ के आयुध बढ़ाओ
राष्ट्र को ऐसा सुअवसर कब मिले फिर
स्वाभिमान जगे ,कि अपना सिर उठाओ
*
उधर पश्चिम द्वार कब से खटखटाता ,
सिन्धु नद व्याकुल प्रतीक्षा में खड़ा है
टेरती रावी ,शतद्रु हिलोर भरती ,
मनुजता के कत्ल का दानव अड़ा है
*
पूर्व सागर के किनारे बाहु फैला,
बंग घायल बार-बार पुकार भरता ,
अंक में भर लो मुझे फिर से मिला लो
खंड-खंडित, भग्न अंतर ले बिखरता .
*
पौध विष की जड़ सहित क्षिति से उखाड़ो
बुद्धि-विद्या-ज्ञान के दुश्मन सदा के,
मनुज-संस्कृति के विदारक दस्यु-धर्मी
विश्व-द्रोही, जीव तम के, रक्त - प्यासे ,
*
कृतघ्नी बन पूर्वजों का, अन्न-जल का ,
जन्म-भू से द्रोह करना जो सिखा दे .
युग-युगों की साधनाओं के सुफल को ,
मत्त पशु सा खूँद दे, जड़ से  मिटा दे .
*
उठो शिव-संकल्प ले, अह्वान स्वर में  ,
चंडिका के दूत बन, दे दो चुनौती
प्रलयकारी शक्ति के इस संचरण में
पूर्ण कर लो, काल से माँगी मनौती !
*
यह  विरूपित, महादेश स्वरूप पा ले ,
कंठ में अपनी वही मणि-माल डाले .
और गुरु-गंभीर स्वर जय-स्तोत्र गूँजें
अवतरण नव कर चलें जीवन- ऋचाएँ !
*

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

फाड़ दो वे पृष्ठ काले !

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उतर आए रुद्र ,दुर्गा शक्ति* जागी ,
 सामने है आसुरी मति भी अभागी ,
चल  रही अन्याय की बाज़ी निरंतर ,
रक्तबीजों ने झड़ी अपनी लगा दी !
*
किन्तु कब तक सैन्य माहिष यों डटेगी 
झूठ ,छल परपंच,की माया बिछाये .
अस्मिता ओ राष्ट्र की ,टंकार लो धनु, 
टेरती है चंडिका खप्पर उठाए ! 
*
काल-पट पर लौ उठाते  शब्द लिक्खो ,
प्रखर छंद जगें, सुलगते  हर्फ़ वाले ,
आज खुल कर सामने आ कर खड़े हो ,
फाड़ दो इतिहास के वे  पृष्ठ काले !
*
साथ आयें कोटि-कोटि-सहस्त्र कर अब, 
शस्त्र पूजो सुजन, अरे विषण्ण मत हो !
एक हो कर बने अपरंपार दुर्गा,
अमृत-बेला, विजय का प्रस्थान-पथ हो !
*